विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया के दूसरे टीके को भी मंजूरी दे दी है, जिसके साथ ही दुनिया के दूसरे टीके के इस्तेमाल का रास्ता भी साफ हो गया है। SII ने कहा कि टीके के ‘प्री-क्लिनिकल’ और ‘क्लिनिकल’ परीक्षण से जुड़े आंकड़ों के आधार पर यह मंजूरी दी गई है और परीक्षणों के दौरान चार देशों में यह टीका काफी हद तक अच्छा साबित हुआ है। SII ने एक बयान में कहा कि यह बच्चों को मलेरिया से बचाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की मंजूरी पाने वाला दुनिया का दूसरा टीका बन गया है। जिसमें WHO ने ‘नोवावैक्स’ की सहायक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और एसआईआई द्वारा तैयार किए गए आर21/मैट्रिक्स-एम नामक मलेरिया के इस टीके के उपयोग को मंजूरी दे दी है।
SII (Serum Institute of India)ने कहा कि WHO की मंजूरी मिलने के बाद नियामक मंजूरी शीघ्र ही मिलने की उम्मीद है और अगले साल की शुरुआत में आर21/मैट्रिक्स-एम टीका का इस्तेमाल शुरू हो जाएगा। आर 21 मैट्रिक्स-एम को ब्रिटेन की आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित किया गया है। और इसका साल 2024 की शुरुआत में कुछ अफ्रीकी देशों में उपयोग शुरू कर दिया जाएगा। और साथ ही अन्य देशों में भी साल2024 के तक उपलब्ध करा दी जाएगी।
यह बीमारी विशेष रूप से पांच साल से कम उम्र के बच्चों को होती है।
मलेरिया एक गंभीर और घातक बीमारी है जो हर साल लाखों लोगों को प्रभावित करती है, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, 2020 में दुनिया भर में मलेरिया के कम से कम 241 मिलियन मामले थे, जहां लगभग 627,000 मौतें हुईं। अफसोस की बात है कि यह बीमारी विशेष रूप से पांच साल से कम उम्र के छोटे बच्चों को प्रभावित करती है, जो मलेरिया से होने वाली कुल मौतों में से दो-तिहाई के लिए जिम्मेदार हैं। हालाँकि, R21 मलेरिया वैक्सीन के विकास के साथ क्षितिज पर अच्छी खबर है, जो भविष्य के लिए आशाजनक खबर लाती है।
इससे पहले साल 2021 में आई थी पहली वैक्सीन
इससे पहले साल 2021 में मलेरिया की पहली वैक्सीन RTS, मोस्क्यूरिक्स वैक्सीन को मान्यता दी थी।आपको बता दें कि इस वैक्सीन को ब्रिटिश दवा निर्माता कंपनी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन ने ही बनाया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टड्रोस एडनॉम घेब्रेयसुस ने कहा, इस वैक्सीन को अफ्रीकी वैज्ञानिकों ने अफ्रीका में ही बनाया है और हमें इस पर गर्व है।कोविड-19 ने दुनियाभर की सरकारों और स्वास्थ्य विभागों को परेशान किया हुआ था। लेकिन अफ्रीका के लिए कोविड-19 से कहीं ज्यादा मलेरिया घातक साबित होता आया है। मलेरिया परजीवी प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम के कारण होता है। WHO के अनुसार इस बीमारी के कारण अकेले 2019 में ही अफ्रीका में 3 लाख 86 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 18 महीनों के दौरान अफ्रीका में कोविड-19 के कारण 2 लाख 12 हजार लोगों ने जान गंवाई है। मलेरिया के कुल वैश्विक आंकड़ों में से WHO के अनुसार 1.3 अरब की जनसंख्या वाले अफ्रीका से 94 फीसद मामले आते हैं। तो वही मच्छरों के काटने से यह बीमारी फैलती है, जिसके कारण बुखार, उल्टी और थकान जैसी समस्याएं होने लगती हैं।