आज की दुनिया में, हर चीज़ में भेद करने के लिये एक बहुत पतली रेखा है। बहुत समय से OTT मे सेंसरशिप हो या ना हो इस बात को लेकर काफी बहस रही है, कुछ लोगों का कहना है कि OTT मे सेंसरशिप जरूरी है। लेकिन कुछ का कहना है कि इससे क्रिएटिविटी और फ्री एक्स्प्रेसन मे असर पड़ेगा। वैसे इस बहस का कोई अंत नहीं है। लेकिन केंद्र सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय ने नए ब्रॉडकास्टिंग सर्विसेज बिल का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। अमेजन प्राइम, नेटफ्लिक्स, डिज्नी हॉटस्टार जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म जल्द ही सेंसरशिप के दायरे में होंगे। इसमें ओटीटी, सैटेलाइट केबल टीवी, डीटीएच, आईपीटीवी, डिजिटल न्यूज और करेंट अफेयर्स के लिए भी नए नियम बनाए जा रहे हैं।
हाल के वर्षों में, भारत में स्ट्रीमिंग इंडस्ट्री द्वारा कन्टेंट में स्पष्ट बदलाव नजर आया है। ऐसा कयी वजहों से हुआ है। बढ़ती सेंसरशिप ने अभिनेताओं और फिल्म निर्माताओं की रचनात्मक स्वतंत्रता को बाधित कर दिया है, जिसमें कानून निर्माताओं और जनता की ओर से बार-बार जांच की जा रही है।
बहस के अलग अलग तर्क
YouGov के एक सर्वे के अनुसार, 57% लोग ऑनलाइन स्ट्रीमिंग के लिए आंशिक सेंसरशिप का समर्थन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसे प्लेटफॉर्म पर बहुत सारी आपत्तिजनक कन्टेंट यानी जनता के देखने के लिए अनुपयुक्त कन्टेंट डाली जाती है। सेंसरशिप का समर्थन करने वाले अधिकांश लोग 40 वर्ष से अधिक आयु के वयस्क हैं। हालाँकि, इस तरह की सेंसरशिप के खिलाफ सबसे मजबूत तर्क यह है कि ओटीटी प्लेटफार्मों पर कन्टेंट सब्सक्रिप्शन ऑन डिमांड है, जहां दर्शकों के पास भुगतान करने और क्या देखना है यह चुनने का विकल्प होता है। इसके अलावा, फिल्मों की चोरी एक और कारक है जिसके कारण फिल्म निर्माता ओटीटी का रास्ता अपनाते हैं। बड़ी संख्या में ऐसे कलाकार हैं जिनके पास सिनेमा के माध्यम से अपने रचनात्मक विचारों को प्रदर्शित करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है, ओटीटी उनके लिए एक बड़ी सफलता के रूप में आया है।
शायद यह मनोरंजक कहानी बनाने के लिए एक योग्य आधार प्रदान करता है। और यही कारण है कि अधिकांश दर्शक ऐसे प्लेटफार्मों द्वारा प्रदान की जाने वाली सामग्री की ओर आकर्षित होते हैं। वे राजनीतिक दलों की भागीदारी से निडर हैं और इसलिए साहसिक आख्यान और कथानक प्रस्तुत करते हैं। वे विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को चित्रित करते हैं जो किसी न किसी कारण से मुख्यधारा के सिनेमा में शामिल नहीं हैं।
कैसी नजर आयेगी ब्रॉडकास्टिंग एडवाइजरी काउंसिल?
ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कंटेंट की निगरानी के लिए ब्रॉडकास्टिंग एडवाइजरी काउंसिल की स्थापना की जाएगी। 25 साल के मीडिया अनुभव वाले व्यक्ति के नेतृत्व वाली परिषद में पांच सरकारी और पांच गैर-सरकारी सदस्य होंगे। आचार संहिता का उल्लंघन करने पर ओटीटी प्लेटफार्मों के लिए अस्थायी निलंबन, निष्कासन, सलाहकार चेतावनी, निंदा या ₹5 लाख तक का जुर्माना हो सकता है।
ये प्रस्तावित नियम भारत में डिजिटल कन्टेंट और प्रसारण की निगरानी में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देते हैं, जिससे कन्टेंट निर्माताओं और उपभोक्ताओं दोनों के लिए सेंसरशिप और संभावित वित्तीय प्रभावों के बारे में चिंताएं बढ़ जाती हैं। कानून बनने से पहले ड्राफ़्ट को आगे की जांच और सार्वजनिक इनपुट से गुजरना होगा।