अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कुछ रिश्ते बड़े दिलचस्प और जटिल होते हैं। चाहे वो फिर दो देशों के सम्बंध हों या नेताओं के… ऐसा ही एक रिश्ता है अमेरिका के पूर्व और फिर से होने वाले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के बीच। दोनों नेताओं के बीच की कड़वाहट और वैचारिक टकराव ने सिर्फ दोनों देशों के संबंधों को प्रभावित किया है, बल्कि दुनिया भर में चर्चा का विषय भी बना रहा है।
2018 में G7 शिखर सम्मेलन एक ऐसा मंच बन गया जहां ट्रंप और ट्रूडो के बीच तनाव पहली बार खुलकर सामने आया। कनाडा के निर्यात पर भारी टैरिफ लगाने के अमेरिकी फैसले को लेकर ट्रूडो ने कड़ा विरोध जताया। इसके जवाब में ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से ट्रूडो को “बेईमान और कमजोर” कहा।
ट्रंप की आक्रामक बयानबाजी ने दोनों नेताओं के बीच व्यक्तिगत दुश्मनी को हवा दी। यह सिर्फ व्यापारिक मुद्दा नहीं रहा, बल्कि उनके संवाद में एक तीखा व्यक्तिगत रंग भी आ गया।
पिछ्ले 4-5 साल ट्रूडो के लिए ठीक रहे लेकिन अब परेशानी बढ़ गई है। ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के साथ ही इस कहानी ने नया मोड़ ले लिया है। ट्रंप ने फिर से कनाडा पर 25% टैरिफ लगाने का ऐलान किया, जिससे कनाडा की अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ने की आशंका बढ़ गई। ट्रूडो की सरकार पर पहले से ही दबाव था, और इस निर्णय ने उस दबाव को और बढ़ा दिया।
इसके अलावा अभी दो दिन पहले ही ट्रम्प ने ट्रूडो को छेड़ते हुए सोशल प्लेटफॉर्म पर लिखा, “कई कनाडाई चाहते हैं कि कनाडा 51वां राज्य बने।” “वे टैक्स और सैन्य सुरक्षा पर भारी बचत करेंगे। मुझे लगता है कि यह एक बढ़िया विचार है। 51th स्टेट!!!”
हालात तब और खराब हुए जब ट्रंप ने सोशल मीडिया पर ट्रूडो का मजाक उड़ाते हुए उन्हें “कनाडा राज्य का गवर्नर” कहा। उनके इस बयान ने कनाडा के लोगों में गुस्सा भर दिया। वहीं, ट्रूडो की अपनी पार्टी में भी असंतोष बढ़ा। उनकी वित्त मंत्री का इस्तीफ़ा इस तनाव को और स्पष्ट कर देता है। उनका जाना, जो कि सरकार का बजट पेश करने से ठीक पहले हुआ, सरकार के लिए झटका है और ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रूडो और उनकी पहले से ही कमजोर लिबरल पार्टी को कगार पर ला खड़ा किया है। ट्रूडो का राजनीतिक अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा है। कनाडा की विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पियरे पोलीव्रे ने जल्द चुनाव कराने का आह्वान किया है।
भविष्य की तस्वीर फिलहाल तो धुंधली है। लेकिन ट्रंप की आक्रामक नीतियां और ट्रूडो की कमजोर होती छवि कनाडा-अमेरिका संबंधों को और बिगाड़ सकती हैं।
कनाडा में, सरकार “अविश्वास मत” रख सकती है, एक प्रस्ताव जिसके ज़रिए संसद के सदस्य तय करते हैं कि उन्हें अभी भी प्रधानमंत्री पर भरोसा है या नहीं। अगर प्रधानमंत्री बहुमत मत खो देते हैं, तो उन्हें इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
हालांकि, एक संभावना यह भी है कि ट्रूडो की सरकार ट्रंप की नीतियों के खिलाफ कोई बड़ा डिप्लोमैटिक कदम उठाए। लेकिन इसके लिए उन्हें अपनी पार्टी और जनता का पूरा समर्थन चाहिए।
ट्रंप बनाम ट्रूडो की कहानी सिर्फ राजनीतिक नहीं है। यह दो अलग-अलग व्यक्तित्वों और उनकी विचारधारा का टकराव है। यह देखना दिलचस्प होगा कि ये टकराव आगे क्या मोड़ लेता है। राजनीति में कोई भी रिश्ता स्थायी नहीं होता चाहे वो दोस्ती का हो या दुश्मनी का… ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि दोनों नेताओं की जुबानी जंग कहीं दोनों देशों के बीच स्थायी दरार ना डाल दे?