30 जनवरी 1933, यह वह दिन था जब एडोल्फ हिटलर ने जर्मनी के चांसलर पद की शपथ ली थी। यह वह क्षण था जब जर्मनी की राजनीति ने एक नया मोड़ लिया, और दुनिया ने एक ऐसे युग की शुरुआत देखी जो इतिहास में रक्तरंजित अक्षरों में दर्ज हुआ। लोकतंत्र का अंत, व्यक्तिगत अधिकारों का हनन और नस्लीय श्रेष्ठता की विचारधारा का उदय… यह सब उसी दिन से शुरू हुआ।
हिटलर और नाज़ी पार्टी ने खुद को जर्मनी के Messiah के रूप में प्रेजेंट किया। वे दावा करते थे कि प्रथम विश्व युद्ध की हार, संधि की कठोर शर्तें और आर्थिक संकट का समाधान केवल एक मजबूत नेतृत्व यानी कि वो ही कर सकते हैं।
हिटलर ने सत्ता में आते ही पहला बड़ा कदम उठाते हुए सरकार के हर पहलू पर नियंत्रण स्थापित करने की योजना बनाई। 27 फरवरी 1933 को जर्मन संसद में एक रहस्यमयी आग लगी। इस घटना को कम्युनिस्टों की साजिश बताकर हिटलर ने आपातकाल लागू कर दिया। यह आपातकाल लोकतंत्र के लिए मृत्यु का समय था। उसके बाद मार्च 1933 में ‘Enabling Act’ पास किया गया, जिसने हिटलर को पूर्ण तानाशाही शक्तियाँ दे दीं। अब जर्मन संसद को बायपास कर कोई भी कानून बनाया जा सकता था। संविधान, मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्य केवल शब्द मात्र बन कर रह गए।
इसके बाद, हिटलर ने यहूदियों, राजनीतिक विरोधियों, बुद्धिजीवियों और पत्रकारों के खिलाफ अभियान शुरू किया। प्रेस और रेडियो को पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में ले लिया गया। हर जगह हिटलर के भाषणों और नाजी विचारधारा का प्रचार किया जाने लगा। हिटलर का ‘गेस्टापो’ यानी उनकी पर्सनल पुलिस किसी को भी गिरफ्तार कर सकती थी, यातना दे सकती थी या गायब कर सकती थी।
1934 में, राष्ट्रपति पॉल वॉन हिंडनबर्ग की मृत्यु के बाद, हिटलर ने चांसलर और राष्ट्रपति दोनों पदों को मिलाकर खुद को ‘Furer’ घोषित कर दिया। अब वह जर्मनी का सर्वोच्च नेता था। सेना, नौकरशाही, शिक्षा और अर्थव्यवस्था…हर क्षेत्र में सिर्फ हिटलर का राज था।
हिटलर की विचारधारा ‘आर्य श्रेष्ठता’ पर आधारित थी। उसने ‘यहूदी विरोधी नीति’ लागू की और ‘न्युरेम्बर्ग कानून’ बनाए, जिसके तहत यहूदियों के नागरिक अधिकार छीन लिए गए। उनकी संपत्तियाँ जब्त की गईं, उन्हें सरकारी नौकरियों से निकाला गया और धीरे-धीरे समाज से अलग-थलग कर दिया गया।
हिटलर का मानना था कि जर्मनी को ‘Pure Aryan Race’ का राष्ट्र बनना चाहिए। इसी विचारधारा के तहत 1938 में Kristallnacht हुई… यहूदियों की दुकानों, घरों और आराधना स्थलों को तोड़-फोड़ कर आग लगा दी गई। इसके बाद लाखों यहूदियों को Concentration Camps में भेजा जाने लगा, जहाँ उन्हें अमानवीय परिस्थितियों में रखा जाता था।
नाजी शासन के तहत न केवल यहूदी बल्कि समलैंगिक, शारीरिक रूप से अक्षम, राजनीतिक असहमति रखने वाले और रोमा समुदाय के लोग भी नष्ट किए गए। हिटलर ने जर्मनी को एक सैन्य शक्ति बनाने के लिए ‘आक्रामक विस्तार नीति’ अपनाई, जिसके कारण 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया।
1939 में पोलैंड पर हमला करके हिटलर ने पूरी दुनिया को युद्ध में झोंक दिया। उसने फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैंड्स और नॉर्वे पर कब्ज़ा कर लिया, लेकिन रूस के खिलाफ युद्ध उसकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई। 1943 में स्टालिनग्राद की लड़ाई में जर्मनी को करारी हार मिली, और धीरे-धीरे नाजी शासन का पतन शुरू हो गया।
30 अप्रैल 1945 को, जब सोवियत सेना बर्लिन के द्वार पर थी, हिटलर ने एक बंकर में आत्महत्या कर ली। इसके साथ ही नाजी जर्मनी का अंत हो गया, लेकिन उसके अत्याचारों की छाया आज भी इतिहास में दर्ज है।
हिटलर का शासन दुनिया के लिए एक चेतावनी की तरह है कि जब सत्ता निरंकुश होती है और लोकतंत्र को कुचल दिया जाता है, तो परिणाम विनाशकारी होते हैं। नाज़ी शासन ने यह दिखा दिया कि किस तरह एक नेता जनता कैसे पूरी सभ्यता को संकट में डाल सकता है।