कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे की अटकलें तेज हो गई हैं। हालांकि, अभी तक उन्होंने आधिकारिक तौर पर इस्तीफा नहीं दिया है, लेकिन उनकी लोकप्रियता में गिरावट और राजनीतिक दबाव के कारण उनके पद छोड़ने की संभावना पर चर्चा हो रही है। लेकिन ऐसा क्या हुआ और क्यों हुआ कि ट्रूडो की स्थिति इतनी कमजोर हुई है।
जस्टिन ट्रूडो, जो 2015 में एक युवा और करिश्माई नेता के रूप में सत्ता में आए थे, उनकी लोकप्रियता पिछले कुछ वर्षों में लगातार घटी है। महंगाई, आवास संकट, और स्वास्थ्य सेवाओं में कमी जैसे मुद्दों ने उनकी सरकार को घेर लिया है। कनाडा के नागरिकों का मानना है कि ट्रूडो सरकार इन समस्याओं को हल करने में नाकाम रही है।
हाल ही में कनाडा की खुफिया एजेंसी CSIS ने खुलासा किया कि चीन ने कनाडा के चुनावों में हस्तक्षेप किया था। इस मामले में ट्रूडो सरकार पर आरोप लगे कि उन्होंने इस जानकारी को जनता से छुपाया। इससे उनकी विश्वसनीयता को गंभीर झटका लगा है।
कोविड-19 महामारी के दौरान ट्रूडो सरकार ने कई कदम उठाए थे, लेकिन उनके प्रबंधन पर भी सवाल उठे। वैक्सीन मंडी और लॉकडाउन नीतियों को लेकर उनकी आलोचना हुई। कई लोगों का मानना है कि सरकार ने महामारी के आर्थिक प्रभावों को ठीक से संभाला नहीं।
पिछले डेढ़ साल में भारत और कनाडा के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं। इसकी मुख्य वजह कनाडा में रह रहे खालिस्तानी समर्थकों की गतिविधियां और ट्रूडो सरकार का उनके प्रति नरम रुख रहा है।
सितंबर 2023 में, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने संसद में आरोप लगाया कि भारत सरकार ने कनाडा में रह रहे एक खालिस्तानी समर्थक निजर सिंह की हत्या में भूमिका निभाई है। इस आरोप को भारत सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया और इसे “बेतुका” और “राजनीतिक” बताया।
भारत ने इस मामले में कनाडा से सबूत मांगे, लेकिन कनाडा सरकार ने कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया। इसके बाद, भारत ने कनाडा के साथ राजनयिक संबंधों को कम कर दिया और वीजा सेवाओं को भी रोक दिया।
भारत ने कनाडा पर आरोप लगाया कि वह खालिस्तानी समर्थकों को सुरक्षा दे रहा है, जो भारत की एकता और संप्रभुता के लिए खतरा हैं। इस मुद्दे ने दोनों देशों के बीच संबंधों को और खराब कर दिया।
भारत सरकार ने कनाडा के साथ संबंधों में तनाव के बावजूद, अपनी स्थिति स्पष्ट रखी है। भारत ने हमेशा कनाडा से आतंकवाद और अलगाववादी गतिविधियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग की है। निजर सिंह के मामले में भारत ने कनाडा के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह भारत की छवि को धूमिल करने की कोशिश है।
भारत ने कनाडा को यह भी स्पष्ट किया कि अगर कनाडा भारत की चिंताओं को गंभीरता से नहीं लेगा, तो द्विपक्षीय संबंधों में सुधार मुश्किल होगा।
कनाडा के विपक्षी दल, विशेष रूप से कंजर्वेटिव पार्टी, ने ट्रूडो पर लगातार हमला बोला है। उन्हें आर्थिक नीतियों, पर्यावरण नीतियों, और विदेशी मामलों में कमजोर नेतृत्व का आरोपी ठहराया गया है। विपक्ष ने उनके इस्तीफे की मांग भी की है।
ट्रूडो की छवि हमेशा से एक प्रगतिशील और समावेशी नेता की रही है, लेकिन कुछ विवादों ने उनकी छवि को धूमिल किया है। उन पर नस्लीय और सांस्कृतिक मुद्दों पर संवेदनशीलता की कमी का आरोप लगा है। इसके अलावा, उनके निजी जीवन और फैशन के प्रति उनके झुकाव को भी कई बार आलोचना का सामना करना पड़ा है।
अमेरिका में ट्रंप की जीत के बाद से ही ट्रूडो पर प्रेशर था। ट्रंप लगातार ट्रूडो पर निशाना साध रहे थे। इससे पहले कनाडा के उपप्रधानमंत्री और वित्त मंत्री ने भी इस्तीफा दिया था। यानी उनकी खुद की पार्टी के अंदर पहले से ही ट्रूडो के इस्तीफे की मांग की जा रही थी। अब ट्रूडो ने खुद ही इस्तीफे का इशारा दे दिया है। ताकि ये मैसेज ना जाए कि पार्टी के सांसदों ने उन्हें पार्टी से बाहर किया।
अगर जस्टिन ट्रूडो इस्तीफा देते हैं, तो लिबरल पार्टी को एक नए नेता का चुनाव करना होगा। इससे कनाडा की राजनीति में एक नया मोड़ आ सकता है। हालांकि, ट्रूडो ने अभी तक कोई ऐसा संकेत नहीं दिया है, लेकिन उनके सामने चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं।
जस्टिन ट्रूडो का कार्यकाल शुरू में बहुत उम्मीदों के साथ शुरू हुआ था, लेकिन समय के साथ उनकी लोकप्रियता घटती गई। उनकी सरकार की नीतियों को लेकर लोगों में नाराजगी है। यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि श्री ट्रूडो तुरंत पद छोड़ देंगे या नए नेता के चयन तक प्रधानमंत्री पद पर बने रहेंगे। अगर ट्रूडो इस्तीफा देते हैं, तो यह कनाडा की राजनीति में एक नया अध्याय होगा। चीज़े बेहतर होने की संभावना भी बढ़ जायेगी।