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Reading: रास बिहारी बोस – एक गुमनाम योद्धा
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Fourth Special

रास बिहारी बोस – एक गुमनाम योद्धा

रास बिहारी काफी पहले से ही भारत की स्वतंत्रता के स्वप्न देखा करते थे।

Last updated: फ़रवरी 11, 2025 5:16 अपराह्न
By Mihir Dhekane 5 महीना पहले
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5 Min Read
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यूं तो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनगिनत नायक-नायिकाओं ने बहुमूल्य योगदान दिया एवं इस समर कुंड में अपने प्राणों की आहुति दी। परन्तु कुछ ही ऐसे ही थे जो यथोचित कीर्ति प्राप्त कर सके एवं बाकी कई पीछे रह गए। आज इस लेख के माध्यम से भारतमाता के ऐसे ही वीर पुत्र का स्मरण करेंगे जिनका नाम कही छूट सा गया है। और उस विभूति का नाम है रास बिहारी बोस।

जन्म एवं परिवार

रासबिहारी बोस का जन्म 25 मई 1886 को बंगाल प्रेसीडेंसी के सुबलदह ग्राम में पिता बिनोद बिहारी तथा माता भुवनेश्वरी देवी के घर हुआ। वे गांव में सभी के प्रिय थे तथा अपने हठी स्वभाव के लिए जाने जाते थे। बचपन में अपने दादा तथा गुरु से प्रेरक कहानियां सुनने के बाद उन्होंने इस लड़ाई में शामिल होने का संकल्प लिया।

स्वाधीनता संग्राम में शुरुआती भागीदारी

रास बिहारी काफी पहले से ही भारत की स्वतंत्रता के स्वप्न देखा करते थे और सन् 1905 में 19 वर्ष की युवावस्था में वे इस लड़ाई में शामिल हुए। प्रारंभ में उन्होंने देहरादून के वन अनुसंधान संस्थान में एक क्लर्क की नौकरी की। उसी दौरान एक और क्रांतिकारी बाघा जतिन की अगुवाई वाले संगठन “युगान्तर” के बारे में उन्हें ज्ञात हुआ और वे इससे जुड़ गए।

कुछ समय पश्चात श्री अरविंद के राजनीतिक शिष्य रहे निरालंब स्वामी के संपर्क में आने के बाद वे तत्कालीन संयुक्त प्रांत और पंजाब के आर्य समाजी क्रान्तिकारियों के नज़दीक आए।

दिल्ली षड्यंत्र मामला

12 दिसंबर 1911 में ब्रिटिश भारत के तत्कालीन सम्राट जॉर्ज पंचम के दिल्ली दरबार के बाद वायसरॉय लॉर्ड हार्डिंज की सवारी निकाली जा रही थी। इसकी सुरक्षा हेतु अंग्रेज़ों ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। सादे कपड़ों में सीआईडी के अधिकारी सभी जगह फैल गए थे। सुपरिटेंडेंट से लेकर कॉन्स्टेबल तक सभी सुरक्षा पंक्ति में खड़े थे। बोस की योजना थी इसी भव्य यात्रा में बम धमाका करना और अंग्रेज़ों को एक कड़ा संदेश देना। साथी सेनानी अमरेंद्रनाथ चटर्जी के शिष्य बसंत कुमार बिस्वास को बम फेंकने के लिए चुना गया। साथ ही बालमुकुंद गुप्त, अवध बिहारी और मास्टर अमीर चंद ने भी इसमें सक्रिय भूमिका निभाई।

जब वायसरॉय का काफिला चांदनी चौक तक पहुंचा ठीक उसी समय महिला का भेस धरे बसंत कुमार ने मौका पाते ही बम फेंक दिया। विस्फोट के बाद पूरा इलाका धुएं से भर गया। लॉर्ड हार्डिंज बेहोश होकर गिर पड़े। यद्यपि उनकी मृत्यु नहीं हुई परन्तु पीठ, पैर और सर पर काफी चोटें आई। उनके कंधे का मांस भी फट गया था।

बाद में बसंत छुपकर बंगाल जा पहुंचे। कुछ समय तक तो स्थिति सामान्य रही मगर फरवरी में अपने पिता की अंत्येष्टि करने हेतु पैतृक गांव आए बसंत को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। धीरे-धीरे बाकी साथी भी गिरफ्तार कर लिए गए और सबपर मुकदमा चलने के बाद कालापानी की भीषण सज़ा सुनाई गई। बाद में ब्रिटिश सरकार के हस्तक्षेप के बाद इसे मृत्युदंड में बदल दिया गया। मई 1915 में तीनों देशभक्तों को फांसी पर लटका दिया गया। बोस गिरफ्तारी से बचते घूमते रहे और अंततः 1916 में जापान पहुंचने में सफल रहे।

जापान में जीवन

भारत से कोसों मील दूर जापान में भी रास बिहारी हारकर नहीं बैठे। उन्होंने 28-30 मार्च 1942 को टोक्यो में एक सम्मेलन बुलाया, जिसमें इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना का निर्णय लिया गया। वहां उन्होंने आज़ादी की प्राप्ति हेतु एक सेना खड़ी करने का प्रस्ताव भी पास किया। 22 जून 1942 को बैंकॉक में लीग का दूसरा सम्मेलन हुआ, जिसमें सुभाष चंद्र बोस को लीग में शामिल होने और इसके अध्यक्ष के रूप में कमान संभालने का निर्णय लिया गया। 1 सितंबर 1942 को बोस बाबू की मदद से आज़ाद हिंद फौज का गठन हुआ। उन्होंने इस सेना के संगठनात्मक ढांचे एवं ध्वज का चयन भी किया, जिसे बाद में सुभाष बाबू को सौंप दिया गया।

मृत्यु

21 जनवरी 1945 को तपेदिक के कारण इस महापुरुष ने 58 वर्ष की आयु में अंतिम श्वास लिया। मृत्यु से पूर्व जापान सरकार ने उन्हें ऑर्डर ऑफ द राइजिंग सन (द्वितीय श्रेणी) से भी सम्मानित किया था।

रास बिहारी जी का जीवन एक प्रेरणा हैं, जिन्होंने अपने दृढ़ संकल्प और बहादुरी से संग्राम को नई दिशा दी। हालांकि वे यथायोग्य प्रसिद्धि प्राप्त नहीं कर सके, लेकिन उनका योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा।

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TAGGED: british india, delhi conspiracy case, freedom fighters, Indian history, indian patriots, Rash Behari Bose, swadeshi movement, thefourth, thefourthindia
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