भारत की पहली महिला शिक्षिका और समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले की आज 128वीं पुण्यतिथि है। उनका जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में हुआ था। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर महिलाओं और दलितों के विकास के लिए बहुत प्रयास किए।
सावित्रीबाई फुले ने 1848 में पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला। उस समय, महिलाओं की शिक्षा को समाज में कोई मान्यता नहीं थी। इसके लिए उन्हें कई मुश्किलों और अपमान से गुजरना पड़ा यहां तक कि उनपर कीचड़ और पत्थर भी उछाले गए। उन्होंने जातिवाद के खिलाफ भी आवाज उठाई और महिलाओं को शिक्षा के माध्यम से मज़बूत बनाने की कोशिश की।
सावित्रीबाई फुले ने बाल विवाह और जातिगत भेदभाव जैसी बुराइयों के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी। उन्होंने विधवाओं के लिए ठिकाने बनाए और उन्हें शिक्षा के साथ अन्य ज़रूरी बातें भी सिखाई। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर सत्यशोधक समाज की स्थापना की, जिसका मकसद समानता और न्याय पर आधारित समाज का निर्माण करना था।
10 मार्च, 1897 को प्लेग के कारण उनका निधन हो गया। उन्होंने अपने जीवन को समाज के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और उन्हें शिक्षा और सम्मान दिलाया। उनका योगदान आज भी प्रासंगिक है। वे सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं। सावित्रीबाई फुले ने समाज में बदलाव लाने के लिए कई अहम कार्य किए।
उन्होंने न केवल महिलाओं के लिए शिक्षा के दरवाज़े खोले, बल्कि समाज में फैली हुई असमानता और अन्याय के खिलाफ भी आवाज उठाई। उनके प्रयासों ने महिलाओं को मज़बूत बनाने और समाज में समानता लाने में अहम भूमिका निभाई। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि शिक्षा और समाज सेवा के माध्यम से हम समाज में ज़रूरी बदलाव लाए जा सकते हैं। उन्होंने अपने जीवन में बहुत सारी मुश्किलों का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी। सावित्रीबाई फुले की पुण्यतिथि पर आइए हम उनके योगदानों को याद करें और उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाएं।