कोई पेशाब करके चला गया, किसी ने पैर धो दिए। तिलक लगा दिया…। कांग्रेसी कहते हैं हम न्याय दिलाएंगे, भाजपाई कहते हैं हम जीवन संवारेंगे तुम्हारा! 3 दिन से यह तमाशा जारी है। तमाशा इसलिए क्योंकि यह सब कुछ किसी मंजिल तक पहुंचने वाला नहीं है। न तो दसमत और उसके परिवार की जिंदगी में कुछ बदलेगा और ना ही दलित और सवर्णों के बीच की दूरियां कम होंगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान में पानी सिर्फ गरीब के पैर पर नहीं डाला है.. बल्कि इस पूरे मामले पर डाल दिया है! हां ये जरूर हुआ है की मुलजिम शुक्ला को गिरफ्तार कर लिया गया है, घर पर बुलडोजर भी चलवा दिया गया है। अब कांग्रेसियों के पास कुछ करने को बचा नहीं है, भाजपाई अपने काम पर लौट जाएंगे। दसमत को फिर उसी झोपड़े, अंधेरे और दुखों से जूझना है। गरीबी, धक्के, तिरस्कार वही सब खेलना है।
ये कैसा न्याय
इस मामले में न्याय तो हुआ ही नहीं है ..ना दशमत की तरफ से और ना ही प्रवेश शुक्ला की तरफ से। प्रवेश का जो घर तोड़ा गया है क्या वह सिर्फ उसी का था? उसके गुनाह की सजा उसके निर्दोष परिवार को क्यों दी गई? उसके माता-पिता परिवार बिलख रहे हैं! आखिर कौन से मां-बाप होंगे जो अपने बच्चे को सिखाते होंगे कि शराब पीकर गरीब पर पेशाब कर देना? सवाल सिर्फ यह है कि प्रवेश की गुनाह की सजा उसके परिवार को क्यों दी गई ? ना तो वह आदतन अपराधी है! और ना ही कोई दादा पहलवान!
परिवार परेशान
उधर दसमत के बीवी बच्चे परेशान हैं सियासत से । कांग्रेसी घर के बाहर जमे हैं। भाजपाई उन्हें हटाने के लिए अड़े हैं। खूब नारेबाजी और भिड़ंत हो रही है। जिस गांव और बस्ती में सफेदपोश झांकने भी नहीं जाते थे । वहां 4 दिन से मेला लगा है। फरियादी के बच्चे रो रहे हैं । पत्नी बार-बार बेहोश हो जाती है।
विधायक की लुटिया डूबने के आसार !
इस मामले में सबसे ज्यादा नुकसान विधायक केदारनाथ शुक्ला का हुआ है। विधानसभा चुनाव के कुछ महीनों पहले हुआ यह घटनाक्रम उनकी नया डूबा सकता है। शुक्ला के सामने लोग खड़े भी नहीं होते थे, लेकिन बुधवार की रात आदिवासी गांव में उन्हें चप्पल तक दिखा दी गई ।वापस जाओ के नारे लगे। चेहरे पर मुस्कान और विनम्रता में जुड़े हाथों के पीछे की कालिख सामने आ गई है । यह दूसरी बार है जब विधायक के करीबी ने बवाल करवाया है। इससे पहले थाने में पत्रकारों को निर्वस्त्र कर दिया गया था । इस बात की सजा दी गई थी कि उन्होंने विधायक के खिलाफ खबर क्यों लिखी। तब भी और अब भी… पुलिस और प्रशासन की भूमिका शक के घेरे में है ।