रक्षाबंधन भाई बहनो के बीच मनाया जाने वाला पर्व है। इस दिन बहन अपने भाइयों को रक्षाधागा बंधती हैं,और भाई अपनी बहनों को जीवन भर उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं। रक्षाबंधन हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व प्रत्येक वर्ष सावन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं रक्षाबंधन का पर्व कैसे शुरू हुआ? दरअसल इस त्योहार को मनाने के पीछे कई सारी पौराणिक कहानियां प्रचलित है। रक्षाबंधन का त्यौहार सब से पहले इन्द्र और उनकी पत्नी सची के साथ जोड़ा गया। उसके बाद यम और उनकी बहन यमुना के साथ, उसके बाद राजा बलि, भगवान वामन और माता लक्ष्मी की कथा के साथ,व बाद में इस परंपरा को भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी के साथ भी उलेख किया गया।
आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ पौराणिक कथाओं के बारे में।
इंद्रदेव और सची
भगवत पुराण और विष्णु पुराण के आधार पर यह माना जाता है कि जब भगवान विष्णु ने राजा बलि को हरा कर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया, तो बलि ने भगवान विष्णु से उनके महल में रहने का आग्राह किया। भगवान विष्णु इस आग्रह को मान गये। हालाँकि भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी को भगवान विष्णु और बलि की मित्रता अच्छी नहीं लग रही थी, तो उन्होंने भगवान विष्णु के साथ वैकुण्ठ जाने का निश्चय किया। इसके बाद माँ लक्ष्मी ने बलि को रक्षा धागा बाँध कर भाई बना लिया। इस पर बलि ने लक्ष्मी से मनचाहा उपहार मांगने के लिए कहा। इस पर माँ लक्ष्मी ने राजा बलि से कहा कि वह भगवान विष्णु को इस वचन से मुक्त करे कि भगवान विष्णु उसके महल मे रहेंगे। राजा बलि ने ये बात मान ली और साथ ही माँ लक्ष्मी को अपनी बहन के रूप में भी स्वीकारा ।
शुभ लाभ और माँ संतोषी
भगवान विष्णु के दो पुत्र हुए शुभ और लाभ। इन दोनों भाइयों को एक बहन की कमी बहुत खलती थी, क्यों की बहन के बिना वे लोग रक्षाबंधन नहीं मना सकते थे। इन दोनों भाइयों ने भगवान गणेश से एक बहन की मांग की और कुछ समय के बाद भगवान नारद ने भी गणेश को पुत्री के विषय में कहा। इस पर भगवान गणेश राज़ी हुए और उन्होंने एक पुत्री की कामना की। भगवान गणेश की दो पत्नियों रिद्धि और सिद्धि, की दिव्य ज्योति से माँ संतोषी का अविर्भाव हुआ। इसके बाद माँ संतोषी के साथ शुभ लाभ रक्षाबंधन मनाने लगे।
रानी कर्णावती और हुमायूँ
एक अन्य ऐतिहासिक गाथा के अनुसार रानी कर्णावती और मुग़ल शासक हुमायूँ से सम्बंधित है। सन1535 के आस पास की इस घटना में जब चित्तोड़ की रानी को यह लगने लगा कि उनका साम्राज्य गुजरात के सुलतान बहादुर शाह से नहीं बचाया जा सकता तो उन्होंने हुमायूँ, जो कि पहले चित्तोड़ का दुश्मन था, उनको को राखी भेजी और एक बहन के नाते मदद माँगी।
यम और यमुना
एक अन्य पौराणिक कहानी के अनुसार, मृत्यु के देवता यम अपनी बहन यमुना से 12 वर्ष तक किसी कारण वर्ष मिल नहीं पाए, तो यमुना दुखी हुई और माँ गंगा से इस बारे में बात की। गंगा ने यह सुचना यम तक पहुंचाई कि यमुना उनकी प्रतीक्षा कर रही हैं। जिसके बाद यम अपनी बहन युमना से मिलने आये। यम को देख कर यमुना बहुत खुश हुईं और उनके लिए विभिन्न तरह के व्यंजन बनाने लगी। यम को इससे बेहद ख़ुशी हुई और उन्होंने यमुना से कहा कि वे मनचाहा वरदान मांग सकती हैं। इस पर यमुना ने उनसे ये वरदान माँगा कि यम जल्द अपनी बहन के पास आयें। यम अपनी बहन के प्रेम और स्नेह से गद गद हो गए और यमुना को अमरत्व का वरदान दिया। इसी तरह भाई बहन के इस प्रेम को भी रक्षा बंधन के हवाले से याद किया जाता है।
श्रीकृष्ण और द्रौपदी
महाभारत युद्ध के समय द्रौपदी ने कृष्ण की रक्षा के लिए उनके हाथ मे राखी बाँधी थी। इसी युद्ध के समय कुंती ने भी अपने पौत्र अभिमन्यु की कलाई पर सुरक्षा के लिए राखी बाँधी।