1980 के दशक से हिप-हॉप को उसके explicit और वॉयलेंट लिरिक्स और स्लैंग के लिए आलोचना की गई है और वॉयलेंस को प्रोत्साहित करने का श्रेय दिया गया है। कई लेखों को पढ़ने से पता चलता है कि हिप-हॉप में लगातार वॉयलेंट पोर्टरेयल का प्रचलन अधिक रहा है और अन्य संगीत शैलियों की तुलना में हिंसा और आक्रामकता पर अधिक प्रभाव पड़ा है, जैसे कि रैप संगीत के संपर्क में आने वाले युवा हिंसा को एक स्वीकार्य साधन के रूप में मानने की अधिक संभावना रखते हैं। भारत मे ये महिलाओं को एक मटेरियल की तरह ट्रीट करने, क्लब, शराब और गाड़ियों के लिए कुख्यात रहा लेकिन इसका दूसरा पक्ष है रेवोल्यूशन जिसे बिल्कुल नकारा नहीं जा सकता है। हिप-हॉप का उपयोग पुराने समय से सामाजिक और राजनीतिक अन्याय के खिलाफ बोलने के लिए किया जाता रहा है और अब भारतीय रैपर्स भी उस विरासत को जारी रख रहे हैं।
हिप हॉप म्यूजिक वास्तव में यह उन मुद्दों पर बात करने का जरिया है जिनके बारे में लोग बात करने से डरते हैं, चाहे वह संयुक्त राज्य अमेरिका में हो या उन राजनीतिक मुद्दों के बारे में बात करना जो मध्य पूर्व को प्रभावित करते हैं। रैप ऐसा करने का एक बहुत सीधा तरीका है। रैप एक युवा संस्कृति है जिसने दुनिया भर में अपनी जगह बना ली है, इसलिए यह बहुत पॉवरफुल मीडियम है।
अलजजीरा ने 2012 में ‘पोएट्स ऑफ प्रोटेस्ट’ नाम की एक श्रृंखला प्रसारित की, जिसमें अरब और उत्तरी अफ्रीकी पोएट् के जीवन, क्रिएटिव प्रोसेस और राजनीतिक घटनाओं के बारे में जानकारी दी गई है। इस शो का उद्देश्य राजनीति में रैप और पोएट्री की भूमिका और अपने नागरिकों द्वारा विदेशी सरकारों के लोकतांत्रिक सुधार की इच्छा को उजागर करना है। इस श्रृंखला में, अलजज़ीरा में कवि अल खदरा, अहमद फौद नेगम, हला मोहम्मद, येहिया जाबेर, मनाल अल शेख और माज़ेन मारौफ़ की कहानियाँ शामिल थे।
भारत और विश्व में विरोध संगीत और कविता कोई नई बात नहीं है, उदाहरण के लिए, इटालियन सोंग ‘बेला सियाओ’ का इस्तेमाल इटली में क्रांतिकारियों द्वारा तानाशाह मुसोलिनी के नेतृत्व वाले फासीवादियों के खिलाफ किया गया था। और इसका उपयोग 20वीं शताब्दी के पहले कुछ हिस्से के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और उसके बाद के वर्षों में, संगीत का इस्तेमाल देश भर के कार्यकर्ताओं द्वारा सामाजिक और राजनीतिक अन्याय के खिलाफ बोलने के लिए किया जाता रहा है। लेकिन हाल के दिनों में किसी भी संगीत शैली ने भारत में उस तरह से लोकप्रियता हासिल नहीं की है जिस तरह से रैप ने की है।
हमारे हैदराबादी रैपर्स या हिप-हॉप कलाकार, जो अब समाज में विभिन्न अन्यायों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए नए और क्रिएटिव गाने लेकर आये। यहां आंदोलन ने विशेष रूप से नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) विरोधी विरोध प्रदर्शनों मे देखे गये।
इसी तरह से तेलुगु रैपर असुर या अदुसुमल्ली प्रमोद शेषी रॉय, जिन्होंने तेलुगु गीत ‘एम स्वतंत्रम’ या ‘यह स्वतंत्रता क्या है’ बनाया, जो नागरिकों के रूप में भारतीयों को मिलने वाली स्वतंत्रता पर सवाल उठाते हैं। लोग जो अनुभव करते हैं उस पर एक बहुत ही दार्शनिक दृष्टिकोण देते हुए, वह उन असमानताओं को उजागर करते हैं जो भारत के विदेशी शासन से मुक्त होने के दशकों बाद भी मौजूद हैं। “आज़ादी के बाद भी भारत में तमाम अन्याय जारी हैं, तो यह कैसी आज़ादी है?”
प्रोटेस्ट पोएट्री की झलक दिखाने मे कश्मीर भी शामिल था, जहां रौशन इलाही उर्फ एमसी काश के नेतृत्व में युवा रचनाकारों की एक नई पीढ़ी ने रैप के माध्यम से दशकों की राजनीतिक उथल-पुथल और आघात की कहानियां बताना शुरू किया।
मेनस्ट्रीम की बात करे तो 3 साल पहले रैपर इक्का का गाना “आवाज ये आज़ाद” हैं मे भी अलग तरह की प्रोटेस्ट पोएट्री थी जिसे काफी पसंद किया गया था। उस गाने की कुछ लाइनें है।
“आवाज ये आजाद है। ये मांगती जवाब है
इसे बंद तुम करोगे तो। ये आवाज आतंकवाद है।
मैं फैन भगत सिंह का, गुलामी नहीं सहता खुद पे है भरोसा, आसमान में हूं रहता हाथ में कलाम, कागज पर पानी सा हूं बहता महनत से बना पुल जो आसानी से नहीं दिखता।
फिर से लाया हिप-हॉप वाली बातें हॉप यानी मूवमेंट, हिप यानि ज्ञान भी धरम इतने सारे, किसे मानु? मैं हूं नास्तिक।
‘कैसा मेरा देश’ ट्रैक मे दिखी थी प्रोटेस्ट पोएट्री की झलक
कृष्णा कौल aka krsna ने 2010 में यंग प्रॉजपेक्ट के स्टेज नेम के रूप में ‘कैसा मेरा देश’ नाम का एक हिपहॉप गीत रिलीज किया था। जो एक भ्रष्टाचार विरोधी गीत है। 2010 में यह गाना यूट्यूब पर #2 ट्रेंडिंग नंबर 2 पर था जो उस समय एक अकल्पनीय बात थी। यह गाना भारत का पहला यूट्यूब गाना था जो ट्रेंडिंग में रहा। इस गाने मे देश भर के लोगों ने बड़े रूप मे प्रोटेस्ट पोएट्री का एक नमूना देखा था।
रफ्तार का ‘औरत’ ट्रैक बना महिलाओं की आवाज़
2017 मे भारत के बड़े रैपर रफ़्तार ने रेडियो सिटी को दिए एक इंटरव्यू में एक रैप प्रेजेंट किया था। जो इस देश मे महिलाओं की व्यथा को उजागर करता है। 90 सेकंड का रैप सॉन्ग ‘औरत’ दर्शाता है कि मीडिया से लेकर आम आदमी तक सभी ने बलात्कार और छेड़छाड़ के विभिन्न मामलों को कैसे मिस हैंडल किया है। रफ्तार यह बताते हुए शुरुआत करते है कि कैसे गवाह और सबूत मौजूद होने पर भी कानूनी व्यवस्था किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचती है। यह उन अंतहीन बहसों पर उंगली उठाता है, जो महिलाओं के लिए स्थिति को बदलने के लिए कुछ नहीं करतीं। बलात्कार या एसिड हमले की हर खबर मीडिया के लिए जल्द ही बासी हो जाती है, रफ़्तार खुलेआम बताते है कि कैसे समाज और पुरुष महिलाओं को नीचा दिखाते हैं, पूरा ‘औरत’ रैप कड़वी सच्चाई सामने लाता है रफ़्तार का औरत ट्रैक भारतीय रैप इंडस्ट्री में एक बड़ा बदलाव था। लेकिन म्यूजिक इंडस्ट्री और देश का ये दुर्भाग्य है कि जहाँ अपमानजनक गीत आसानी से एक हिट गीत में बदल जाते हैं ऐसे मार्मिक गाने नही चलते।
EPR अय्यर का एल्बम ‘प्रोटेस्ट पोएट्री’ इस जॉनर को बेहतर परिभाषित करता है
हसल फेम कोलकाता बेस्ड पोएट ईपीआर अय्यर ने प्रोटेस्ट पोएट्री नाम से अपना एक एल्बम रिलीज किया था। इसमें कोई शक नहीं कि यह देसी हिप-हॉप के सर्वश्रेष्ठ एल्बमों में से एक है। जैसा कि इस एल्बम का शीर्षक इस एल्बम के उद्देश्य को दर्शाता है, इस एल्बम के सभी गाने या तो किसी न किसी प्रकार के सामाजिक मुद्दे या मान्यताओं पर आधारित हैं। एक बात पक्की है कि अगर आप हिप-हॉप के प्रशंसक हैं तो आपको यह एल्बम पसंद आएगा! एल्बम में 17 ट्रैक हैं हमें यकीन है कि आपमें से कई लोगों ने उनमें से कई को नहीं सुना होगा क्योंकि ईपीआर वास्तव में बहुत अंडररेटेड आर्टिस्ट है। वो इससे कहीं ज्यादा सुने जाना डिसर्व करते हैं।
भारत में ये जॉनर क्युं हुआ इतना लोकप्रिय
प्रोटेस्ट रैप भारत में इसलिए भी इतना लोकप्रिय है क्योंकि अधिकांश कलाकारों ने अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में रैप करना चुनते हैं। चाहे तमिल हो या पंजाबी या असमिया। इससे न केवल उन्हें खुद को धाराप्रवाह रूप से अभिव्यक्त करने का मौका मिलता है बल्कि अंदरूनी इलाकों में अपने साथियों के साथ बेहतर तरीके से जुड़ने में भी मदद मिलती है।