नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मदन बी. लोकुर ने “द वीक” के लिए लिखा है की बृजभूषण और पहलवानों के बीच चल रही लड़ाई में अब तक हुए उतार-चढ़ाव इशारा कर रहे हैं कि पुलिस तो बृजभूषण की तरफ है। उस पर पॉक्सो के तहत एफआईआर दर्ज हुई है। इसमें सात साल तक की सजा मुमकिन है। फोटो-वीडियो के सबूत तक दे दिए गए हैं। लड़कियों ने आपबीती सुनाई है। कई चीजें साबित कर रही हैं कि आदतन हरकतबाज है, लेकिन अब तक दिल्ली पुलिस में दम नहीं दिख रहा है। गिरफ्तार न होने पर बृजभूषण सबूत से छेड़छाड़ कर सकता है, रसूख का फायदा उठा कर छिप सकता है। भले ही उसे गिरफ्तार न किया गया होता, लेकिन पूछताछ तो हो जाना चाहिए थी।
कई मामले याद दिलाए
‘ जस्टिस ने ऐसे कई मामले याद दिलाए, जिनमें इतने संगीन आरोप होने के बाद मुलजिम की मुश्कें कस दी गईं। बृजभूषण के मामले में ऐसा नहीं हुआ है। जब तक पहलवान कोर्ट नहीं गए थे, पुलिस तो एफआईआर तक लिखने को तैयार नहीं थी। कानून से तो और भी खिलवाड़ हुए हैं, जैसे कि कुश्ती फेडरेशन में यौन-शोषण के खिलाफ शिकायत दर्ज करने वाली कमेटी ही नहीं बनाई गई, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में ही नियम बना दिया था। सिवाय खेल मंत्रालय के पहलवानों के पास कोई रास्ता नहीं था।
पहलवानों की मुश्किल
रेलवे की तरफ से फरमान भेजा गया कि नौकरी करो, वरना निकाल देंगे। मजबूरन उन्हें आंदोलन छोड़ नौकरी पर जाना पड़ा। दिल्ली पुलिस ने तो हद ही कर दी। जब पहलवानों का दल संसद भवन की तरफ जा रहा था, तो न सिर्फ उनकी पिटाई की गई, हिरासत में भी रखा गया और पहलवानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी। हुड़दंग की धाराओं के तहत केस दर्ज हुए। बृजभूषण की अकड़ बरकरार है।
बृजभूषण के खिलाफ पहले से मामले दर्ज हैं, लेकिन फिर भी अब तक पुलिस के हाथ उस तक नहीं गए हैं। उनकी मजबूरी भी साफ दिख रही है। अभी कोई दूसरा होता, तो पासपोर्ट जब्त हो जाता, लुक-आउट नोटिस जारी हो जाता। बीते कई मामले देखे जा सकते हैं, जहां दिल्ली पुलिस के एक्शन और इंवेस्टिगेशन पर सवाल रहा है।
ऐसे समझाया भेदभाव
पॉक्सो जैसे मामले के बाद सख्ती नहीं दिखाई गई। एफआईआर नहीं लिखी थी, तब तक तो ठीक था। एफआईआर हो जाने के बाद भी बृजभूषण से कोई सवाल-जवाब नहीं हुआ है। यूं तो जमानती धाराओं में भी गिरफ्तारियां हो जाती हैं, लेकिन यहां तो गैर-जमानती धारा होने के बाद भी पुलिस ने हाथ बांध रखे हैं। क्या पुलिस से उम्मीद की जा सकती है कि बगैर भेदभाव के जांच कर सकेगी। जंतर-मंतर पर डेढ़ महीना बिताने के बाद भी पहलवानों ने अपना मान-सम्मान खोया है। संसद भवन जाना चाहते थे, तो हिरासत में ले लिए गए। सही-गलत तो छोडि़ए… आम इंसान के मौलिक हक पर भी आंच आई है।