शिमला। जब अंग्रेज हिंदुस्तान आए थे, तो कुछ चुनिंदा लोगों के लिए हिमालय के पहाड़ों पर बस्तियां बसाई गईं, जो अब पूरी तरह बाजारवाद की शिकार हो गई हैं। यहां रहने वाले लोगों की दिनचर्या इस कदर प्रभावित हुई कि घर से निकलते वक्त भी सोचना पड़ता है। 51 बरस के संजय कृष्ण शिमला के रहने वाले हैं और तय नहीं कर पा रहे हैं कि न्यू शिमला में अपने घर से छोटे शिमला तक जाने के लिए कार का इस्तेमाल करें या पैदल निकल जाएं, क्योंकि अब शिमला में आए दिन जाम में फंसने का डर रहता है। बड़े शहरों की तरह यहां भी लोग घड़ी देख कर घर से निकलते हैं।
कई तरह की परेशानियां
हिमाचल में शिमला और कसौल के अलावा उत्तराखंड के मसूरी और नैनीताल पर नए डेवलपमेंट और सैलानियों की तादाद ने उसकी कुदरती सुंदरता को कमजोर कर दिया है। पहाड़ों में आने-जाने वाले वाहन अब बोझ बन गए हैं। पार्किंग की दिक्कत, पानी की समस्या और प्रदूषण के कारण पिघलती बरफ अब आम है। अब निर्माण ज्यादा हो जाने के कारण सड़कें संकरी हो रही हैं। ढलान वाले रास्तों पर चलना मुश्किल है। यहां के पुराने लोग बताते हैं कि अंग्रेजों ने गरमियों के लिए शिमला को अपनी राजधानी बनाया था। महज पच्चीस हजार लोगों के लिए इसे डिजाइन किया गया था। अब यहां की आबादी तीन लाख है और सैलानी अलग। लोग बताते हैं कि लालच ने आबोहवा का गला दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सड़क किनारे कार पार्किंग और हर दिन करीब 75 हजार लोगों की अस्थायी आबादी का शिमला पहुंच जाना किसी से छिपा नहीं है।
विरासत सलाहकार की राय
आबोहवा और हिमाचल की विरासत सलाहकार समिति के बीरेंद्र सिंह मल्हंस कहते हैं- बढ़ता ट्रैफिक शिमला के लिए बड़ी दिक्कत है। मुझे 2018 के वो दस-बारह दिन याद हैं, जब शिमला में पानी ही नहीं था, जबकि यहां की नगर निगम खुद को स्मार्ट कहती है। सरकारी आंकड़े तो यह कहते हैं कि शिमला में गरमियों में रोजाना लोगों के लिए 42 मिलियन लीटर पानी की व्यवस्था है, जबकि हकीकत ये है कि तीस मिलियन लीटर मिल जाए, तो बड़ी बात है।
सरकार का दावा
हिमाचल प्रदेश सरकार का दावा है कि उसने पहले पर्यावरण अनुकूल तरीके से समस्या का समाधान किया है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के प्रधान सलाहकार नरेश चौहान बताते हैं कि हम शिमला में रोप-वे लगाने का काम कर रहे हैं, जिसमें पहले चरण में पंद्रह किलोमीटर का नेटवर्क तैयार होगा, जो पंद्रह अलग-अलग जगह को जोड़ेगा। कसौल के रहने वाले यूडी शर्मा, जो हिमाचल पर्यटन की होटल में सहायक प्रबंधक से रिटायर हुए हैं, वे बताते हैं कि इन दिनों यहां रहने वाले लोगों के पास चारन पहिया वाहनों की तादाद अचानक बढ़ गई और सैलानी भी चार गुना हो गए। जब कर्नल फ्रैंडरिंग यंग ने 1820 में मसूरी की नीव रखी, तो उन्होंने सोचा नहीं होगा कि आराम के लिए बनाई गई यह जगह भीड़भाड़ वाला हिल स्टेशन बन जाएगी। शिमला जैसी दिक्कत मसूरी के साथ भी है। इसे दस से पंद्रह हजार लोगों के लिए डिजाइन किया गया था। 1951 में यहां की स्थायी आबादी 7133 थी, जो 2011 की जनगणना में बढ़ कर तीन लाख के पार पहुंच गई। यहां रोजाना पंद्रह से प”ाीस हजार सैलानी पहुंच जाते हैं। इस भूचाल वाले इलाके में 1950 में महज हजार घर थे, जहां अब दो हजार से ज्यादा रिसॉर्ट, होटल, गेस्ट-हाउस बन गए हैं। गरमी और सर्दी में जब मैदानी इलाकों में मौसम बिगड़ता है, तो सैलानियों की भीड़ पहाड़ों की तरफ कूच कर देती है। अपनी खूबसूरती के कारण यहां के लोकल लोग भी सब कुछ भूल कर पैसा कमाने में लग जाते हैं।