पंजाब में हाल के वर्षों में कुछ ईसाई धर्म प्रचारक धर्मांतरण का एक बड़ा अभियान चला रहे हैं। धर्मांतरण के बाद भी ये अपने हिंदू या सिख नामों को बरकरार रखते हैं और सिख-हिंदू परंपराओं को अपने चर्च में जारी रखते हैं, जिससे उनकी पहचान में कोई विशेष परिवर्तन नहीं दिखता। सोशल मीडिया पर इन पादरियों की बड़ी उपस्थिति है, जहां वे अपने ‘चमत्कारों’ के वीडियो साझा करते हैं, जो बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करते हैं।
कभी ये लाइलाज बीमारियों के चमत्कारिक इलाज, रातों-रात धनवान बनने के वादे, और वीज़ा प्राप्ति की गारंटी देकर लोगों को भटका रहें हैं। विशेष रूप से गरीब और दलित समुदायों को टार्गेट कर रहे हैं।
इन पादरियों में से कुछ प्रमुख नाम हैं…बजिंदर सिंह, अंकुर नरूला, हरप्रीत देओल, और रमन हंस। बजिंदर सिंह, जो मूल रूप से हरियाणा के करनाल के रहने वाले हैं, ‘द चर्च ऑफ़ ग्लोरी एंड विज़डम’ के संस्थापक हैं। उनके सोशल मीडिया पर 58 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं। उन पर पहले हत्या और यौन उत्पीड़न के आरोप लग चुके हैं, और 2023 में उनके ठिकानों पर आयकर विभाग ने छापेमारी भी की थी।
पिछले दिनों पंजाब के जालंधर में ‘द चर्च ऑफ़ ग्लोरी एंड विज़डम’ संस्था वाले पास्टर बजिंदर सिंह के खिलाफ एक महिला ने सेक्सुअल हैरासमेंट के आरोप लगाए। इस मामले में कपूरथला में बजिंदर सिंह के खिलाफ का मामला दर्ज किया गया।
अंकुर नरूला, जो पहले हिंदू-अरोड़ा समुदाय से थे, अब ‘अंकुर नरूला मिनिस्ट्री’ के माध्यम से पादरी के रूप में कार्यरत हैं। वे बुरी आत्माओं से मुक्ति, लाइलाज बीमारियों के इलाज, और आर्थिक तंगी से छुटकारा दिलाने का दावा करते हैं। उनके चमत्कारिक सभाओं में बड़े ऑर्केस्ट्रा और बैकअप सिंगर्स भी शामिल होते हैं, जो उनकी सभाओं को और आकर्षक बनाते हैं।
2023 में एक और पास्टर अंकुर नरुला के 12 ठिकानों पर रेड पड़ी थी। ऐसे ही पंजाब में ईसाई धर्म का प्रचार करने वाले कई पास्टरों पर कई संगीन आरोप लगते रहे हैं, मगर उनके फॉलोअर की तादाद लगातार बढ़ रही है।
हरप्रीत देओल, कपूरथला जिले के खोजेवाला गांव में ‘ओपन डोर चर्च’ चलाते हैं। वे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज का दावा करते हैं। 2023 में आयकर विभाग ने उनके ठिकानों पर छापेमारी की थी।
रमन हंस, जो चमकौर साहिब में ‘मिरेकल टेस्टिमनी’ नामक चर्च चलाते हैं, अपने ‘चमत्कारों’ के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके सोशल मीडिया पर 7 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं। वे पंजाबी भाषा और संगीत का उपयोग करके लोगों को आकर्षित करते हैं, जिससे उनकी सभाओं में स्थानीय संस्कृति की झलक मिलती है।
धर्मांतरण के बाद भी नाम न बदलने और सिख-हिंदू परंपराओं को जारी रखने की रणनीति के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण है: सरकारी आरक्षण का लाभ न खोना। यदि धर्मांतरण के बाद नाम बदल दिए जाएं, तो सरकारी दस्तावेज़ों में परिवर्तन करना पड़ेगा, जिससे आरक्षण के लाभ से वंचित होने की संभावना होती है। इसलिए, ये पादरी अपने और अपने अनुयायियों के नाम नहीं बदलते, जिससे वे सामाजिक और आर्थिक लाभों को बनाए रख सकें।
इन पादरियों की गतिविधियों के कारण पंजाब में ईसाई आबादी में वृद्धि देखी जा रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार, पंजाब में ईसाई आबादी केवल 1.26% थी, लेकिन हाल के वर्षों में यह संख्या बढ़ी है। धर्मांतरण के इस बढ़ते चलन के पीछे मुख्य रूप से आर्थिक, सामाजिक, और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का समाधान देने के वादे हैं, जो गरीब और दलित समुदायों को आकर्षित करते हैं।
राज्य द्वारा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में कमी के कारण लोग ऐसे पादरियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जो चमत्कारिक समाधान का दावा करते हैं। निराशा में, कोई भी उम्मीद देने वाला व्यक्ति भगवान जैसा प्रतीत होता है।
इन पादरियों की गतिविधियों पर निगरानी और आवश्यक कार्रवाई करने की आवश्यकता है, ताकि समाज में भ्रम और धोखाधड़ी को रोका जा सके। साथ ही, सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करके लोगों को सशक्त बनाना चाहिए, ताकि वे ऐसे प्रलोभनों के शिकार न हों।