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Reading: असल मायनों में डॉक्टर के रूप भगवान ही हैं डॉ. तपन कुमार लाहिड़ी!
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असल मायनों में डॉक्टर के रूप भगवान ही हैं डॉ. तपन कुमार लाहिड़ी!

डॉ. लाहिड़ी का जीवन सादगी और सेवा का प्रतीक है

Last updated: मार्च 26, 2025 3:20 अपराह्न
By Rajneesh 2 महीना पहले
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3 Min Read
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डॉक्टर्स को भगवान का दर्जा दिया जाता है। लेकिन आए दिन तमाम डॉक्टरों से मरीजों की लूट की कहानियां भी सुनने को मिलती हैं। ऐसे में आज हम आपको ऐसे डॉक्टर की कहानी सुनाएंगे जो सच मायनों में ईश्वर का ही रूप जैसा है।

उनका नाम है डॉ. तपन कुमार लाहिड़ी, जिन्हें डॉ. टी.के. लाहिड़ी के नाम से भी जाना जाता है, उनका जन्म 3 जनवरी 1941 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था। उन्होंने अपनी चिकित्सा शिक्षा इंग्लैंड में प्राप्त की, जहाँ 1969 में कार्डियक सर्जरी में FRCS और 1972 में थोरैसिक सर्जरी में MH की उपाधि हासिल की।

1974 में, डॉ. लाहिड़ी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान में व्याख्याता के रूप में अपनी सेवा शुरू की, जहाँ उनका मासिक वेतन मात्र ₹250 था। उन्होंने अपने करियर में रीडर, सहायक प्रोफेसर, प्रोफेसर और कार्डियोथोरेसिक सर्जरी विभाग के प्रमुख जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। 2003 में सेवानिवृत्ति के बाद, उन्हें बीएचयू में प्रोफेसर एमेरिटस का सम्मान दिया गया, जिसे उन्होंने बिना वेतन के स्वीकार किया और मुफ्त चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करना जारी रखा।

डॉ. लाहिड़ी का जीवन सादगी और सेवा का प्रतीक है। 1994 से, उन्होंने अपनी पूरी तनख्वाह गरीब मरीजों की सहायता के लिए दान करना शुरू कर दिया था। रिटायर होने के बाद मिलने वाली पेंशन में से वे केवल अपने भोजन के लिए आवश्यक धन रखते हैं, बाकी राशि बीएचयू फंड में छोड़ देते हैं ताकि वह जरूरतमंद मरीजों की मदद कर सके।

उनकी निष्ठा और समर्पण के कारण, भारत सरकार ने 2016 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया। डॉ. लाहिड़ी का मानना है कि भगवान विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा की कृपा से वे अपनी अंतिम सांस तक मरीजों की सेवा करते रहेंगे।

डॉ. लाहिड़ी की दिनचर्या भी बेहद सादी थी। वे प्रतिदिन सुबह छह बजे बीएचयू पहुँचते थे, तीन घंटे की ड्यूटी के बाद घर लौटते थे और शाम को फिर से मरीजों की सेवा प्रदान। उन्होंने कभी भी चार पहिया वाहन नहीं रखा और हमेशा पैदल ही अस्पताल जाते रहे। उनकी सादगी का यह आलम है कि वे शहर के अन्नपूर्णा होटल में ₹20-₹25 की थाली में ही भोजन करते।

उनकी प्रतिबद्धता और समय की पाबंदी इतनी प्रसिद्ध है कि लोग उनकी उपस्थिति से अपनी घड़ियों का समय मिलाते हैं। डॉ. लाहिड़ी ने अपने जीवन में विवाह नहीं किया, ताकि वे पूरी तरह से गरीब मरीजों की सेवा में समर्पित रह सकें।

डॉ. लाहिड़ी का जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची सेवा और समर्पण का अर्थ क्या होता है। उनका जीवन चिकित्सा पेशे में आने वाले सभी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

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TAGGED: Dr. Tapan Kumar Lahiri, Healthcare, Medical Service, Padma Shri, Social Service, thefourth, thefourthindia
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