रमेश बाबू प्रज्ञानानंद भारत के सबसे कम उम्र के शतरंज के ग्रेंड मास्टर हैं । आज भी बहुत कम भारतीय उनके नाम परिचित हैं लेकिन विश्व स्तर पर आज यह व्यक्ति किसी पहचान का मोहताज नहीं है। महज 18 साल की उम्र में इस भारतीय ग्रैंडमास्टर ने दुनिया के 3 नंबर खिलाड़ी एवं अमेरिका के ग्रैंडमास्टर फाबियानो कारूआना को सेमीफाइनल मुकाबले में हरा दिया था। रमेश बाबू प्रज्ञानानंद ने 23 जून 2018 को 12 वर्ष 10 माह और 13 दिन की आयु में शतरंज का ग्रैंडमास्टर बन इतिहास रचा था। अब तक यूक्रेन में जन्मे और अब रूस में रह रहे सर्गेई अलेक्जेंड्रोविच कार्जाकिन ही उनसे कम उम्र में ग्रैंडमास्टर बने हैं । सर्गेई कार्जाकिन 2003 में 12 वर्ष 7 माह की आयु में ग्रैंड मास्टर बने थे। प्रज्ञानानंद मैगनस कार्लसन के साथ विश्व चेस चैम्पियनशिप के फाईनल खेल रहे हैं, पहली दो बाजी ड्रॉ हो गईं थीं । आगे जाकर भले ही वो वर्ल्ड चैंपियन बनने से आखिरी कदम पर चूक गए हों लेकिन मात्र 18 साल की उम्र वाले प्रज्ञाननंदा ने वर्ल्ड चैंपियन मैगनस कार्लसन को तगड़ी चुनौती पेश की थी। कल से दुनिया भर मे कार्लसन की जीत से ज्यादा प्रज्ञाननंदा की हार के चर्चे है ।उनके उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनायें।
10 अगस्त, 2005 को चेन्नई, तमिलनाडु में जन्मे रमेश बाबू प्रज्ञानानंद को देश की सबसे प्रतिभाशाली प्रतिभाओं में से एक माना जाता है। रमेश बाबू के पिता स्टेट कॉर्पोरेशन बैंक में काम करते हैं, और उनकी मां नागलक्ष्मी एक गृहिणी हैं। उनकी एक बड़ी बहन वैशाली आर हैं, जो शतरंज खेलती हैं। पांच साल की उम्र से यह शतरंज प्रतिभा शतरंज खेल रही है। वो भी एक महिला ग्रैंडमास्टर है। 19 साल की वैशाली ने एक इंटरव्यू में बताया था कि शतरंज में उनकी रुचि एक टूर्नामेंट जीतने के बाद बढ़ी और इसके बाद उनका छोटा भाई भी इस खेल को पसंद करने लगा। आज वैशाली भारत में शतरंज की मशहूर खिलाड़ी है। बहन को चेस खेलता देख प्रज्ञानानंद भी उससे प्रभावित होकर शतरंज को महज तीन साल की उम्र में अपने जीवन का हिस्सा बना लिया था। क्योंकि बहन चेस खेलने की ट्रेनिंग लेती थी तो उनकी बहन ने ही उन्हें चेस खेलना सिखाया था। प्रज्ञानानंद के पिता रमेशबाबू न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताते हैं कि हमने वैशाली को शतरंज से जोड़ा जिससे कि उसके टीवी देखने के समय को कम किया जा सके। दोनों बच्चों को यह खेल पसंद आया और इसे जारी रखने का फैसला किया। हमें खुशी है कि दोनों खेल में सफल रहे हैं। इससे भी अहम बात यह है कि वे शतरंज खेलने का लुत्फ उठा रहे हैं।
रमेशबाबू प्रज्ञानानंद की उपलब्धियां सात साल की उम्र में ही प्रज्ञानानंद ने विश्व युवा शतरंज चैंपियनशिप जीती थी। तब सात साल की उम्र में इससे उन्हें फेडरेशन इंटरनेशनेल डेस एचेक्स (FIDE) मास्टर की उपाधि मिली। इसके बाद 2015 में उन्होंने चैंपियनशिप का अंडर-10 डिविजन जीता। वहीं 10 साल की उम्र में उन्होंने शतरंज के सबसे कम उम्र के अंतरराष्ट्रीय मास्टर का खिताब भी हासिल किया। ऐसा करने वाले वह उस समय सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे। इसके बाद 12 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर बने, ऐसा करने वाले वह उस समय के दूसरे सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे। ग्रांडमास्टर का खिताब विश्व शतरंज संगठन एफ.आई.डी.ई द्वारा शतरंज खिलाड़ियों को दिआ जाने वाला एक खिताब है। विश्व चैंपियन के अलावा यह वह सर्वोत्तम खिताब है, जो कोई खिलाड़ी प्राप्त कर सकता है।
18 वर्षीय प्रज्ञानानंद शतरंज के इतिहास में न केवल दूसरे सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टर हैं, बल्कि इसे हासिल करने वाले इतिहास में सबसे कम उम्र के भारतीय भी हैं। शतरंज के खेल में सबसे प्रतिष्ठित उपाधि ग्रैंडमास्टर है। इस उपाधि को प्राप्त करने के लिए खिलाड़ी को 2,500 की शास्त्रीय या मानक FIDE रेटिंग प्राप्त करनी होती है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में तीन ग्रैंडमास्टर मानदंड भी प्राप्त करने होते हैं। महज 12 साल की उम्र में इस असाधारण प्रतिभा ने यह खिताब हासिल कर लिया था। कार्लसन को 16 साल की उम्र में हराया था वहीं ‘चेस डॉट कॉम’ की वेबसाइट के मुताबिक 22 फरवरी 2022 को सिर्फ 16 साल की उम्र में प्रज्ञानानंद तत्कालीन विश्व चैंपियन मैगनस कार्लसन को हराने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बन गये थे। जब उन्होंने एयरथिंग्स मास्टर्स रैपिड शतरंज टूर्नामेंट में एक रैपिड गेम में कार्लसन को हराया। सबसे दिलचस्प बात यह है कि नंबर एक चेस खिलाड़ी मैगनस कार्लसन को प्रज्ञानानंद ने केवल 39 चाल में परास्त कर दिया था। उनसे पहले यह कमाल केवल विश्वनाथन आनंद और पी हरिकृष्णा ही कर पाये थे। हालंकि, सबसे कम उम्र में विश्व चैंपियन को हराने का यह रिकॉर्ड 16 अक्टूबर 2022 तक था, जब इसे एक अन्य भारतीय गुकेश डी द्वारा तोड़ा गया।